मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित मैहर देवी का मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। यहां भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मां के इस मंदिर को शारदा देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। देशभर में देवी शारदा का यह एममात्र मंदिर है। यहां मां दुर्गा देवी सरस्वती के रूप में दर्शन देती हैं। देवी का यह विशेष मंदिर त्रिकुट पर्वत की चोटी पर मध्य भाग में स्थित है जहां देवी शारदा के अतिरिक्त देवी काली, दुर्गा मां, गौरी शंकर, फूलमति माता, काल भैरवी, शेषनाग, जलपा देवी व ब्रह्म देव की भी पूजा होती है। मैहर देवी मंदिर के पीछे यहां आल्हा का तालाब भी है। वह एक योद्घा थे। मंदिर से 2 किमी आगे एक आखाड़ा है। माना जाता है कि यहां आल्हा अपने भाई उदल के साथ कुश्ती किया करते थे।
मैहर देवी को शारदा माई कहे जाने के पीछे भी एक रहस्य है। मान्यता है कि वीर आल्हा देवी को शारदा माई के नाम से पुकारता था। तभी से मैहर देवी को शारदा माई व शारदा देवी के नाम से जाना जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार योद्धा आल्हा और उदल ने राजा पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्घ किया था। इसी दौरान उन्होंने मंदिर की खोज की थी। मान्यता है कि आल्हा ने मंदिर में 12 साल तक तप किया। जिससे मां ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था। मान्यता है कि आल्हा और उदल दोनों 900 साल से आज भी जीवित है। कई लोगों का मानना है कि आज भी ये योद्घा मंदिर के कपाट खुलने से पहले ही मां के दर्शन कर लेते हैं। पट खुलने पर मंदिर के फर्श पर जल व देवी पर फूल अर्पित हुए दिखते है।
मैहर देवी को शारदा माई कहे जाने के पीछे भी एक रहस्य है। मान्यता है कि वीर आल्हा देवी को शारदा माई के नाम से पुकारता था। तभी से मैहर देवी को शारदा माई व शारदा देवी के नाम से जाना जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार योद्धा आल्हा और उदल ने राजा पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्घ किया था। इसी दौरान उन्होंने मंदिर की खोज की थी। मान्यता है कि आल्हा ने मंदिर में 12 साल तक तप किया। जिससे मां ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था। मान्यता है कि आल्हा और उदल दोनों 900 साल से आज भी जीवित है। कई लोगों का मानना है कि आज भी ये योद्घा मंदिर के कपाट खुलने से पहले ही मां के दर्शन कर लेते हैं। पट खुलने पर मंदिर के फर्श पर जल व देवी पर फूल अर्पित हुए दिखते है।
कुछ लोगों का यह मानना है कि मंदिर की स्थापना 502 विक्रम संवत में हुई थी। जबकि यहां मूर्ति की स्थापना 559 विक्रम संवत में हुई थी। मंदिर में सबसे पहले गुरु शुक्राचार्य ने पूजा की थी। महान इतिहासकार कनिंद्वम ने मंदिर के विषय में शोध कर बताया था कि प्राचीन काल में यहां पशु बलि दी जाती थी। बाद में 1922 में सतना के राजा ब्रजनाथ जूदेव ने यहां पशुओं की बलि प्रतिबंधित कर दी। मान्यता है कि राजा दक्ष की पुत्री सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी, लेकिन उनके पिता को यह मंजूर नहीं था। पिता की इच्छा के विपरीत सती ने भगवान शिव के साथ विवाह किया। तभी एक दिन राजा दक्ष ने महल में एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया।
यज्ञ में उन्होंने सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों को आमंत्रित किया, किन्तु उन्होंने शिव को आमंत्रित नहीं किया। इससे सती बहुत व्यधित व क्रोधित हुई और उन्होंने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे। सती की मृत्यु से महादेव बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने अपने त्रिनेत्र खोल दिए। साथ ही यज्ञ कुंड से देवी सती का शव उठाकर वहां तांडव करने लगे। इससे पूरे ब्रह्मांड में हलचल मच गई। सृष्टि की शांति के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से देवी सती के शव के 52 भाग विभाजित कर दिए। देवी के शरीर का जो भाग जिस स्थान पर गिरा वहां शक्तिपीठ बन गए। मैहर देवी में देवी सती का हार गिरा था। जिस कारण इसे मां हार यानी मैहर देवी नाम दिया गया।
मैहर देवी के दर्शन के लिए भक्तों को पर्वत पर बनें 1063 सीढ़ियों को पार करना होता है। देवी का मंदिर सतना रेलवे स्टेशन से 5 किमी दूरी पर है। मां के दर्शन को यहां साल भर भक्तों की भीड़ रहती है। शारदा माई के दर्शन को यहां न सिर्फ स्थानीय लोग, बल्कि देश के दूसरे क्षेत्रों के लोग भी आते हैं। विभिन्न प्रांतों से आए हुए श्रद्धलुओं के यहां ठहरने के लिए कई आश्रय बने हुए है। मंदिर के पास ही उचित मूल्य पर कई होटल व धर्मशालाएं उपलब्ध है। मैहर देवी मंदिर पहुंचने के कई विकल्प है। यहां रेल मार्ग, हवाई मार्ग व सड़क मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है।सतना जिले के पास सबसे प्रमुख हवाई अड्डा यहां से करीब 160 किमी दूर जबलपुर और 140 किमी दूर खजुराहो हवाई अड्डा है।
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Hii there
ReplyDeleteNice blog
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