Wednesday, May 3, 2017

Shri Peetambara Peetha (Goddess Baglamukhi)

Shri Peetambara Peetha is one of the most famous temples of Baglamukhi which was established by Sh. Golokwasi Bramhaleen Pujyapaad RashtraGuru Anant Shree Swami Ji Maharaj in 1920s.
He also established the temple of goddess Dhumavati within the ashram. Dhumavati and Bagalamukhi are the two of the ten Mahavidyas. In addition to those, there are temples of Parshuram, Hanuman, Kal Bhairav and other god and goddess spread across the large area of Ashram.



Currently the Peeth is maintained by a trust. There is a Sanskrit library which was established by the Pujyapaad, and is maintained by Ashram. One can get the books explaining the history of the Ashram and secret mantras of various kind of sadhanas and tantras. One of the unique feature of the Ashram is its endeavor to spread the light of Sanskrit language to young children, free of cost. Ashram conducts Sanskrit debates across the years.

Pujyapaad was called 'Swamiji'or 'Maharaaj' by the devotees. No one knows from where he came, or his name; nor did he disclose this to anyone. However, he was a Parivrajakachrya Dandi Swami,who stayed on in Datia for a longer period.He was and still is a spiritual icon for many who visit the Peeth or have been associated with him directly or indirectly.He did/led many anushthans and sadhanas for the protection and welfare of both humanity and the country. Living legend who knows about Swamiji is Pt Shri Gaya Prasad Nayak ji (Babuji) of Garhi Malehara. Pujya Swamiji Maharaj and Babuji's Guruji were Gurubhai. This shakti peeth has Vankhandeswar Shiva Temple as well which is said to be of the time of Mahabharata.



Pujyapaad was a strong devotee of the Goddess Pitambara. He had a natural liking for the Sanskrit language. He was having good knowledge of Urdu, Persian and Arabic, English, Pali, Prakrit languages. He liked the classical music and various great classical musicians of that time used to visit the ashram. Some of the musicians who visited the ashram are Pundit Gundai Maharaj, Siyaram Tiwari, Rajan and Sajan Mishra, Dagar Bandhu etc. One of the greatest classical musician Acharaya Brhaspati was follower of Pujyapaad.



The Goddess change her appearance thrice in a day. One should visit the ashram with very pure heart and full devotion and should maintain purity of the place in all circumstances. Irrespective of your status, every one has to follow Peeth's discipline for Mai Darshan. No one is allowed to carry leather items i.e. waist belt, wallet, purse etc. inside temple premises even after removing your footwear.

Additional details on http://mandirinfo.com/TempleDetails.aspx?HID=229

1 comment:

  1. मध्य प्रदेश के झांसी के दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा के मंदिर से कोई पुकार कभी अनसुनी नहीं जाती. राजा हो या रंक, मां के नेत्र सभी पर एक समान कृपा बरसाते हैं.

    इस सिद्धपीठ की स्थापना 1935 में परम तेजस्वी स्वामी जी के द्वारा की गई. मां पीतांबरा का जन्म स्थान, नाम और कुल आज तक रहस्य बना हुआ है. मां का ये चमत्कारी धाम स्वामी जी के जप और तप के कारण ही एक सिद्ध पीठ के रूप में देशभर में जाना जाता है. मंदिर के आचार्य हरी ओम पाठक बताते है कि चर्तुभुज रूप में विराजमान मां पीतांबरा के एक हाथ में गदा, दूसरे में पाश, तीसरे में वज्र और चौथे हाथ में उन्होंने राक्षस की जिह्वा थाम रखी है.

    भक्तों के जीवन में मां के चमत्कार को आए दिन घटते देखा जा सकता है. लेकिन इस दरबार में भक्तों को मां के दर्शन एक छोटी सी खिड़की से ही होते हैं. दर्शनार्थियों को मां की प्रतिमा को स्पर्श करने की मनाही है. माना जाता है कि मां बगुलामुखी ही पीतांबरा देवी हैं इसलिए उन्हें पीली वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं. लेकिन मां को प्रसन्न करना इतना आसान भी नहीं है. इसके लिए करना होता है विशेष अनुष्ठान, जिसमें भक्त को पीले कपड़े पहनने होते हैं, मां को पीली वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं और फिर मांगी जाती है मुराद. कहते हैं विधि विधान से अगर अनुष्ठठान कर लिया जाए तो मां जल्द ही पूरी कर देती हैं भक्तों की मनोकामना. मां पीतांबरा को राजसत्ता की देवी माना जाता है और इसी रूप में भक्त उनकी आराधना करते हैं. राजसत्ता की कामना रखने वाले भक्त यहां आकर गुप्त पूजा अर्चना करते हैं. माँ पीतांबरा शत्रु नाश की अधिष्ठात्री देवी है और राजसत्ता प्राप्ति में माँ की पूजा का विशेष महत्व होता है. मंदिर में मां पीतांबरा के साथ ही खंडेश्वर महादेव और धूमावती के दर्शनों का भी सौभाग्य मिलता है. मंदिर के दायीं ओर विराजते हैं खंडेश्वर महादेव, जिनकी तांत्रिक रूप में पूजा होती है.

    महादेव के दरबार से बाहर निकलते ही दस महाविद्याओं में से एक मां धूमावती के दर्शन होते हैं. सबसे अनोखी बात ये है कि भक्तों को मां धूमावती के दर्शन का सौभाग्य केवल आरती के समय ही प्राप्त होता है क्योंकि बाकी समय मंदिर के कपाट बंद रहते हैं. मां पीतांबरा के वैभव से सभी की मनोकामना पूरी होती है. भक्तों को सुख समृद्धि और शांति मिलती है, यही वजह है कि मां के दरबार में दूर दूर से भक्त आते हैं, मां की महिमा गाते हैं और झोली में खुशियां भर कर घर ले जाते हैं.

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