शहर के सिरह ड्योढी में रामचंद्रजी का प्राचीन विशाल मंदिर है। मंदिर के बहारी अहाते में बने चौक के दक्षिण में एक बड़ा दरवाजा है। उसके भीतर स्थापित है चंद्रेश्वर महादेव मंदिर। इस मंदिर की बेजोड़ शिल्प कला श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। मंदिर के जगमोहन में धवल संगमरमर के जयपुर शिल्प के खंभों पर खुबसूरत नक्काशी की गई है। दो मंजिला यह मंदिर शिल्प कला का नायाब नमूना है। इसे देखने के लिए विदेश पर्यटक भी आते है। कभी यहां शाही शानो शौकत से पूजा होती थी, लेकिन अब यह देवस्थान विभाग के अधीन है और सावन में रुद्राभिषेक भी नसीब नहीं होता।
इसकी स्थापना महाराजा रामसिंह ने रामचंद्रजी के मंदिर के साथ ही करवाई थी। महाराजा ने मंदिर का नामकरण अपनी प्रिय रानी चंद्रावती के नाम पर चंद्रेश्वर महादेव रखा। इस प्रकार मंदिर के साथ राजा-रानी की प्रेम कहानी भी जुड़ी है। मंदिर की कुछ प्रतिमाएं चांदनी चौक स्थित प्रतापेश्वर महादेव मंदिर से समानता रखती हैं। गर्भगृह में सामने बने मेहराबदार आले में अष्टधातु से निर्मित मां पार्वती की प्रतिमा है। उनके एक तरफ कार्तिकेय तो दूसरी तरफ गणेशजी की प्रतिमा स्थापित हैं।
जलहरी में शिवलिंग के रूप में चंद्रेश्वर महादेव विरजमान हैं। कार्तिकेय व गणेश के वाहन के रूप में मोर व मूसक की संगमरमर की प्रतिमाएं भी यहां स्थापित हैं। जलहरी के पूर्व में शिव का वाहन नंदी विराजमान है तो पश्चिम की तरफ शक्ति स्वरूपा मां जगदम्बा का वाहन सिंह। एक कोने में बड़ा त्रिशूल स्थापित है। प्रतापेश्वर महादेव मंदिर की भांति इस मंदिर में शिव व शक्ति की पूजा का सामंजस्य देखने को मिलता है। मंदिर में पीतल की नक्काशी किए खूबसूरत दरवाजे लगाए गए है। दरवाजों पर पीतल की कारीगरी इस तरह की गई है कि बंद पट में भी दर्शन किए जा सकते हैं।
गर्भगृह के पूर्व में भगवान का शयन कक्ष बना हुआ है। पुजारी ने बताया कि मंदिर में नर्मदा नदी से लाया गया शिवलिंग स्थापित है। इसके कारण शिवलिंग पर चढ़ाई गई पूजा सामग्री निर्माल्य होती है जिसे कोई भी व्यक्ति ले सकता है, चाहे वो गृहस्थ ही क्यों न हो। जबकि अन्य शिवलिंग पर अर्पित सामग्री केवल गिरि, पुरी गोस्वामी, जोगी ही ले सकते हैं।
इसकी स्थापना महाराजा रामसिंह ने रामचंद्रजी के मंदिर के साथ ही करवाई थी। महाराजा ने मंदिर का नामकरण अपनी प्रिय रानी चंद्रावती के नाम पर चंद्रेश्वर महादेव रखा। इस प्रकार मंदिर के साथ राजा-रानी की प्रेम कहानी भी जुड़ी है। मंदिर की कुछ प्रतिमाएं चांदनी चौक स्थित प्रतापेश्वर महादेव मंदिर से समानता रखती हैं। गर्भगृह में सामने बने मेहराबदार आले में अष्टधातु से निर्मित मां पार्वती की प्रतिमा है। उनके एक तरफ कार्तिकेय तो दूसरी तरफ गणेशजी की प्रतिमा स्थापित हैं।
जलहरी में शिवलिंग के रूप में चंद्रेश्वर महादेव विरजमान हैं। कार्तिकेय व गणेश के वाहन के रूप में मोर व मूसक की संगमरमर की प्रतिमाएं भी यहां स्थापित हैं। जलहरी के पूर्व में शिव का वाहन नंदी विराजमान है तो पश्चिम की तरफ शक्ति स्वरूपा मां जगदम्बा का वाहन सिंह। एक कोने में बड़ा त्रिशूल स्थापित है। प्रतापेश्वर महादेव मंदिर की भांति इस मंदिर में शिव व शक्ति की पूजा का सामंजस्य देखने को मिलता है। मंदिर में पीतल की नक्काशी किए खूबसूरत दरवाजे लगाए गए है। दरवाजों पर पीतल की कारीगरी इस तरह की गई है कि बंद पट में भी दर्शन किए जा सकते हैं।
गर्भगृह के पूर्व में भगवान का शयन कक्ष बना हुआ है। पुजारी ने बताया कि मंदिर में नर्मदा नदी से लाया गया शिवलिंग स्थापित है। इसके कारण शिवलिंग पर चढ़ाई गई पूजा सामग्री निर्माल्य होती है जिसे कोई भी व्यक्ति ले सकता है, चाहे वो गृहस्थ ही क्यों न हो। जबकि अन्य शिवलिंग पर अर्पित सामग्री केवल गिरि, पुरी गोस्वामी, जोगी ही ले सकते हैं।
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ReplyDeleteNice blog
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kamakhya devi temple story in hindi