गुड़गाँव का शीतला माता मंदिर देश भर के श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहाँ साल में दो बार एक-एक माह का मेला लगता है। इसके अलावा नवरात्रि में शीतला माता के दर्शन के लिए कई प्रदेशों से लाखों की तादाद में श्रद्धालु गुड़गाँव पहुँचते हैं। शीतला माता मंदिर की कहानी महाभारत काल से जुड़ी हुई है।
महाभारत के समय में भारतवंशियों के कुल गुरु कृपाचार्य की पत्नी शीतला देवी (गुरु माँ) के नाम से गुरु द्रोण की नगरी गुड़गाँव में शीतला माता की पूजा होती है। लगभग 500 सालों से यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहाँ पर देश के कोने-कोने से लोग पूजा-पाठ के लिए आते हैं।
माता शीतला के इस मंदिर के बारे में लोगो की मान्यता है की इसका सम्बन्ध महाभारत काल से है. कहा जाता है की यही पर आचार्य दोणाचार्य कौरवों और पांडवो को अस्त्र और शस्त्र का प्रशिक्षण देते थे. महर्षि शरद्वान की पुत्री तथा कृपाचार्य की बहन कृपी के साथ गुरु दोणाचार्य का विवाह हुआ था. जब गुरु दोणाचार्य महाभारत के युद्ध में द्रोपद पुत्र धृष्ट्द्युम्न के हाथो वीरगति को प्राप्त हुए थे तो उनकी पत्नी कृपी सोलह श्रृंगार कर गुरु दोणाचार्य के साथ उनकी चिता में बैठी. लोगो ने उन्हें रोकने का प्रयत्न किया परन्तु अपने पती के चिता में सती होने का दृढ निर्णय ले चुकी कृपी ने लोग की बात नहीं मानी. सती होने से पूर्व उन्होंने लोगो को आशीर्वाद देते हुए कहा की मेरे इस सती स्थल पर जो भी व्यक्ति अपनी मनोकामनाए लेकर पहुंचेगा वे अवश्य पूरी होगी.
भरतपुर नाम के एक राजा ने 1650 सन में गुड़गांव में जहाँ पर माता कृपी सती हुइ थी, एक बहुत ही भव्य मंदिर बनवाया तथा उस मंदिर में सवा किलो सोने से निर्मित माता कृपी की मूर्ति स्थापित करी. माता कृपी का शीतला माता नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर लोगो की मनोकामनाओं को पूर्ण करता है तथा दुनिया भर से लाखो भक्त अपनी इच्छाएं लिए इस मंदिर में माता के दर्शन को आते है. यहाँ वेसाख और आसाढ़ के पुरे महीने तथा आश्र्विन के नवरात्रियों में बहुत ही विशाल मेले का आयोजन किया जाता है.
माना जाता है की मंदिर में माता शीतला की पूजा करने से व्यक्ति को कभी चेचक का रोग जिसे स्थानीय भाषा में माता आना भी कहते है नहीं होता .
लोगों की मान्यता है कि यहाँ पूजा करने से शरीर पर निकलने वाले दाने, जिन्हें स्थानीय बोलचाल में (माता) कहते हैं, नहीं निकलते। इसके अलावा नवजात के बालों का प्रथम मुंडन भी यहाँ पर ही होता है।
यही कारण है कि हर साल एक माह तक चलने वाले मेले में मुंडन का ठेका 60 लाख से अधिक में छूटता है। जिला प्रशासन की तरफ से यहाँ पर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए खान-पान व सुरक्षा के विशेष बंदोबस्त किए जाते हैं।
प्रशासन ने मेले की सुरक्षा व सुविधाओं के लिए अलग शीतला माता श्राइन बोर्ड का गठन किया हुआ है जिसकी देख-रेख में मेले के सभी कार्य होते हैं। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं में सबसे अधिक तादाद उत्तर प्रदेश, राजस्थान व हरियाणा के लोगों की होती है।
इसके अलावा देश के सभी प्रदेशों से श्रद्धालु यहाँ पर मन्नतें माँगने आते हैं। नवरात्रों में शीतला माता मन्दिर का नजारा कुछ अलग होता है। इन दिनों यहाँ पर दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं में कई प्रदेशों से लोग आते हैं। खासकर पश्चिम उत्तर प्रदेश के लोग सबसे अधिक शीतला माता को मानते हैं।
शहर के बीचोबीच स्थित शीतला माता मंदिर पर जाने के लिए श्रद्धालुओं को अधिक परेशानी का सामना भी नहीं करना पड़ता। मुख्य बस स्टैंड व रेलवे स्टेशन के बीचों-बीच स्थित होने की वजह से श्रद्धालु आसानी से मंदिर परिसर तक पहुँच सकते हैं। इसके अलावा अपने वाहनों से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मेले परिसर में पार्किंग आदि की विशेष व्यवस्था की गई है।
महाभारत के समय में भारतवंशियों के कुल गुरु कृपाचार्य की पत्नी शीतला देवी (गुरु माँ) के नाम से गुरु द्रोण की नगरी गुड़गाँव में शीतला माता की पूजा होती है। लगभग 500 सालों से यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहाँ पर देश के कोने-कोने से लोग पूजा-पाठ के लिए आते हैं।
माता शीतला के इस मंदिर के बारे में लोगो की मान्यता है की इसका सम्बन्ध महाभारत काल से है. कहा जाता है की यही पर आचार्य दोणाचार्य कौरवों और पांडवो को अस्त्र और शस्त्र का प्रशिक्षण देते थे. महर्षि शरद्वान की पुत्री तथा कृपाचार्य की बहन कृपी के साथ गुरु दोणाचार्य का विवाह हुआ था. जब गुरु दोणाचार्य महाभारत के युद्ध में द्रोपद पुत्र धृष्ट्द्युम्न के हाथो वीरगति को प्राप्त हुए थे तो उनकी पत्नी कृपी सोलह श्रृंगार कर गुरु दोणाचार्य के साथ उनकी चिता में बैठी. लोगो ने उन्हें रोकने का प्रयत्न किया परन्तु अपने पती के चिता में सती होने का दृढ निर्णय ले चुकी कृपी ने लोग की बात नहीं मानी. सती होने से पूर्व उन्होंने लोगो को आशीर्वाद देते हुए कहा की मेरे इस सती स्थल पर जो भी व्यक्ति अपनी मनोकामनाए लेकर पहुंचेगा वे अवश्य पूरी होगी.
भरतपुर नाम के एक राजा ने 1650 सन में गुड़गांव में जहाँ पर माता कृपी सती हुइ थी, एक बहुत ही भव्य मंदिर बनवाया तथा उस मंदिर में सवा किलो सोने से निर्मित माता कृपी की मूर्ति स्थापित करी. माता कृपी का शीतला माता नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर लोगो की मनोकामनाओं को पूर्ण करता है तथा दुनिया भर से लाखो भक्त अपनी इच्छाएं लिए इस मंदिर में माता के दर्शन को आते है. यहाँ वेसाख और आसाढ़ के पुरे महीने तथा आश्र्विन के नवरात्रियों में बहुत ही विशाल मेले का आयोजन किया जाता है.
माना जाता है की मंदिर में माता शीतला की पूजा करने से व्यक्ति को कभी चेचक का रोग जिसे स्थानीय भाषा में माता आना भी कहते है नहीं होता .
लोगों की मान्यता है कि यहाँ पूजा करने से शरीर पर निकलने वाले दाने, जिन्हें स्थानीय बोलचाल में (माता) कहते हैं, नहीं निकलते। इसके अलावा नवजात के बालों का प्रथम मुंडन भी यहाँ पर ही होता है।
यही कारण है कि हर साल एक माह तक चलने वाले मेले में मुंडन का ठेका 60 लाख से अधिक में छूटता है। जिला प्रशासन की तरफ से यहाँ पर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए खान-पान व सुरक्षा के विशेष बंदोबस्त किए जाते हैं।
प्रशासन ने मेले की सुरक्षा व सुविधाओं के लिए अलग शीतला माता श्राइन बोर्ड का गठन किया हुआ है जिसकी देख-रेख में मेले के सभी कार्य होते हैं। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं में सबसे अधिक तादाद उत्तर प्रदेश, राजस्थान व हरियाणा के लोगों की होती है।
इसके अलावा देश के सभी प्रदेशों से श्रद्धालु यहाँ पर मन्नतें माँगने आते हैं। नवरात्रों में शीतला माता मन्दिर का नजारा कुछ अलग होता है। इन दिनों यहाँ पर दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं में कई प्रदेशों से लोग आते हैं। खासकर पश्चिम उत्तर प्रदेश के लोग सबसे अधिक शीतला माता को मानते हैं।
शहर के बीचोबीच स्थित शीतला माता मंदिर पर जाने के लिए श्रद्धालुओं को अधिक परेशानी का सामना भी नहीं करना पड़ता। मुख्य बस स्टैंड व रेलवे स्टेशन के बीचों-बीच स्थित होने की वजह से श्रद्धालु आसानी से मंदिर परिसर तक पहुँच सकते हैं। इसके अलावा अपने वाहनों से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मेले परिसर में पार्किंग आदि की विशेष व्यवस्था की गई है।
Hey there
ReplyDeleteNice blog
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