Tuesday, August 14, 2018

नाग पंचमी पर नाग पूजा

हिन्दू संस्कृति केवल प्राणिमात्र नहीं बल्कि जड़-चेतन, चल-अचल को ईश्वर के रुप में देखता है. प्राचीन काल से पर्वों और उत्सवों को धर्म से जोड़ा गया है. यह यदि प्रत्यक्ष रुप से धार्मिक आस्था में वृद्धि करता है, तो अप्रत्यक्ष रुप से व्यक्ति और समाज को पर्यावरण से जोड़ता है.



सावन माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि मनाए जाने वाले नागपंचमी के लिए और भी ज्यादा प्रासंगिक है. क्योंकि देखा जाए तो वर्तमान समय में सर्पों और नागों को बचाना ज्यादा तर्कसंगत है. कई व्याधियों और रोगों के लिए आज मेडिकल साइंस बहुत हद तक दवाईयों के निर्माण के लिये सांपों और नागों से प्राप्त होने वाले विष पर निर्भर है. इनके जहर की थोड़ी-सी मात्रा अनेक लोगों का जीवन बचानें में उपयोगी है.

भारत आज भी एक कृषि-प्रधान देश है. परंपरागत रुप से यहां वर्षा ऋतु में धान की फसल तैयार की जाती है. इन धान के पौधों को चूहे काट कर नष्ट कर देते है. ये चूहे किसान के शत्रु हैं और चूहों के शत्रु हैं सर्प. सर्प और नाग चूहों भक्षण कर एक संतुलन उत्पन्न करते हैं. सर्पों और नागों की इस पारिस्थितिकीय उपयोगिता के कारण ही प्राचीन काल से नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है.

भारतीय संस्कृति में शिव के गले में सर्प और विष्णु को शेषनाग पर शयन करते हुए दिखाया गया है, जो प्रतीकात्मक रुप से सर्प और नाग के महत्व को उजागर करता है. अमृत सहित नवरत्नों की प्राप्ति के लिए देव-दानवों द्वारा किए गए समुद्र-मंथन की कथा के अनुसार जगत-कल्याण के लिए वासुकी नाग ने मथानी के रस्सी के रुप में कार्य किया था. इस साल गुरुवार, 27 जुलाई को नाग पंचमी मनाई जाएगी.

श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं ‘मैं नागों में अनंत (शेषनाग) हूं’. पुराणों में वर्णित है कि धरती शेषनाग के फणों के ऊपर टिकी हुई है.

पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार इस दिन नाग जाति की उत्पत्ति हुई थी. महाभारत की एक कथा के अनुसार जब महाराजा परीक्षित को उनका पुत्र जनमेजय तक्षक नाग के काटने से नहीं बचा सका तो जनमेजय ने विशाल सर्पयज्ञ कर यज्ञाग्नि में भस्म होने के लिए तक्षक को आने पर विवश कर दिया. तब आस्तिक मुनि के आग्रह और तक्षक के क्षमा मांगने पर उसे क्षमा कर दिया. उन्होंने वचन दिया कि श्रावण मास की पंचमी को जो व्यक्ति सर्प और नाग की पूजा करेगा, उसे सर्प व नाग दोष से मुक्ति मिलेगी.

सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी का विशेष महत्व है। आदि काल से ही इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है और नागों को दूध पिलाया जाता है। इस दिन लोग नाग देवता के दर्शन को शुभ मानते हैं। ऐसी मान्यता है के इस दिन नाग देवता की पूजा करने से और उसे दूध पिलाने ने सारे बुरे प्रभाव दूर हो जाते हैं और नाग का भय भी दूर हो जाता है। नाग पंचमी की पूजा के प्रमाण हड़प्पा संस्कृति की पुरातत्व विभाग की खुदाई में भी मिले हैं।

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार पृथ्वी को नागदेवता अपने सिर पर रखे हुए हैं। नाग देवता की पूजा का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है। नाग देवता की पूजा करने से कई प्रकार के कुंडली में होने वाले दोषों से बचा जा सकता है। इसके लिए नागदेवता की पूरी विधि विधान से पूजा करनी चाहिए।

नागपंचमी के दिन ऐसे करें पूजा

इस दिन नागदेव के दर्शन अवश्य करना चाहिए। नाग देवता की बांबी (नागदेव का निवास स्थान) की पूजा करना चाहिए। नागदेवता पर दूध चढ़ा सकते हैं। उन्हें सुगंधित पुष्प व चंदन से ही पूजा करनी चाहिए। सर्वप्रथम सुबह जल्दी उठ कर स्नान करके नए वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके पश्चात दीवार पर गोबर से पंचमुखी सांप बनाया जाता है। कुछ जगह गोबर के स्थान पर सोने चांदी तथा काठ की कलम से चन्दन की स्याही से पंचमुखी बनाया जाता है। इसी स्थान पर फिर दूध, चावल तथा पुष्प चढ़ाये जाते हैं और भोग लगाया जाता है। कुछ जगह लोग सांप के रहने के स्थान बांबी पर दूध चढ़ाया जाता है। तत्पश्चात नाग देवता की पूजा करके आरती की जाती है। सभी प्रकार के दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए ॐ कुरुकुल्ये हूँ फट स्वाहा का जाप किया जाता है।

नाग पूजन के लिए सेंवई-चावल आदि ताजा भोजन बनाएं। कुछ भागों में नागपंचमी से एक दिन पहले ही भोजन बना कर रख लिया जाता है और नागपंचमी के दिन बासी (ठंडा) खाना खाया जाता है। नागदेवता की दही, दूर्वा, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, जल, कच्चा दूध, रोली और चावल आदि से पूजन कर सेंवई व मिष्ठान से उनका भोग लगाते हैं। इसके बाद आरती करके कथा का सुनना चाहिए।

काल सर्प का निवारण-

हमारे देश में विज्ञान के साथ-साथ अध्यात्म का भी अहम स्थान है। ऐसा माना जाता है के जिनकी कुंडली में काल सर्प दोष होता है उनको जीवन में नाग पंचमी की पूजा अवश्य करवानी चाहिए। इससे दोष भी दूर हो जाता है और जीवन में आने वाले अन्य विघ्न भी दूर हो जाते हैं। शिव पुराण में कहा गया है कि काल सर्प दोषयुक्त कुंडली वाला व्यक्ति यदि नागपंचमी पर नाग की पूजा करें और शिवजी पर सहस्राभिषेक करें तो सर्वमनोकामना सिद्धि प्राप्त होती है। एक और जहाँ पश्चिम बंगाल और ओड़िसा में इस दिन नाग देवी माँ मनसा की पूजा की जाती है वहीँ दूसरी और इस दिन केरला में नाग देवता की पूजा के साथ-साथ माँ सरस्वती की भी पूजा होती है। नाग पंचमी मुख्यतः मध्य,दक्षिण और पूर्वी भारत का प्रसिद्ध त्यौहार है।

नागपंचमी में इन 5 नागों की होती है पूजा

नाग पंचमी पर आमतौर पर पांच पौराणिक नागों की पूजा की जाती है जो क्रमश: अनंत, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक व पिंगल हैं। अनंत (शेष) नाग की शय्या पर भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। वासुकि नाग को मंदराचल से लपेटकर समुद्र-मंथन हुआ था। पुराणों के अनुसार तक्षक नाग के डसने से राजा परीक्षित की मृत्यु हुई थी। नागवंशी कर्कोटक के छल से रुष्ट होकर नारदजी ने उसे शाप दिया था। तब राजा नल ने उसके प्राणों की रक्षा की थी। हिंदू व बौद्ध साहित्य में पिंगल नाग को कलिंग में छिपे खजाने का संरक्षक माना गया है। नासिक में स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में नाग पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि श्रद्धालुओं को नासिक के त्र्यंबकेश्वर, औरंगाबाद के घृष्णेश्वर, उज्जैन के महाकालेश्वर या अन्य ज्योतिर्लिंगों में जाकर विधि-विधान से पूजा पाठ करवाने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है। इस दिन नाग दर्शन का विशेष महत्व होता है। इस दिन सर्पहत्या की मनाही है। पूरे श्रावण माह विशेष कर नागपंचमी के दिन धरती खोदना निषिद्ध है।

नागपंचमी-व्रत महात्मय

एक बार महाराज युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्ण से नागपंचमी-व्रत के विषय में जिज्ञासा व्यक्त की, तब भगवान् श्री कृष्ण ने कहा- ‘युधिष्ठर! दयिता-पंचमी नागों के आनंद को बढ़ाने वाली होती है| श्रावण शुक्ला पंचमी में नागों का महान् उत्सव होता है| उस दिन वासुकि, तक्षक, कालिक, मणिभद्रक, धृतराष्ट्र, रैवत, कर्कोटक और धनंजय- ये सभी नाग प्राणियों को अभय (दान) देते है| जो मनुष्य नागपंचमी के दिन नागों को दूध से स्नान कराते है, दूध पिलाते है| उनके कुल में प्राणियों को ये सदा अभयदान देते रहते है| जब नाग माता कद्रू ने नागों को शाप दे दिया, तब वे रात-दिन संतप्त हो रहे थे| जब उन्हें गाय के दूध से तृप्त किया गया तब से वे प्रसन्न होकर सुखी हो गए|

विद्वानों ने यह पारण-विधि बताई है| इस श्रेष्ठ व्रत के करने से बांधवों को सद्गति की प्राप्ति होती है| सर्पादि के काटने से जिनकी अधोगति हो जाती है, उनके निमित यदि एक वर्ष तक यह उत्तम व्रत भक्ति पूर्वक किया जाए तो वे जीव उस यातना से मुक्त होकर शुभ गति को प्राप्त होते है|

जो भक्तिपूर्वक नित्य इस आख्यान को पढ़ता या सुनता है, उसके कुटुंब में नागों से कोई भय नही होता| इसी प्रकार जो भाद्रपदशुक्ला पंचमी को काले रंगों से नागों का चित्र बनाकर गंध-पुष्प-घी-गूगल-खीर आदि से भक्ति पूर्वक पूजा करता है, उस पर तक्षक आदि नाग प्रसन्न होते है| उसके सात कुल (पीढ़ी) तक नागों से भय नही रहता| इसी प्रकार आश्विनमास की शुक्ला पंचमी को कुश के नाग बनाकर इंद्राणी के साथ उनकी पूजा करे| घी-दूध और जल से स्नान कराकर दूध में पके गेहूँ तथा अन्य भोज्य पदार्थ उन्हें श्रद्धा-भक्तिपूर्वक समर्पित करे तो शेष आदि नाग उस पर प्रसन्न होते है, उसे सुख-शांति प्राप्त होती है| मृत्यु के बाद वह प्राणी उत्तम लोक को प्राप्त करता है, जहाँ चिरकाल तक आनंद भोगता है| यह पंचमी व्रत का विधान है| सर्पों का सर्वेदोष-निवारक मंत्र यह है- ‘ॐ कुरुकुल्ले हुं फट् स्वाहा|’ इस मंत्र से भक्तिपूर्वक सौ पंचमियों को जो सर्पों की पूजा पुष्पों से करते है, उनके घर में साँपों का कभी भय नही होता|

नाग पंचमी कथा और पूजन विधि 

 नाग पंचमी के दिन उपवास रख, पूजन करना कल्याणकारी कहा गया है. श्रवण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन नाग पंचमी का पर्व प्रत्येक वर्ष श्रद्धा और विश्वास से मनाया जाता है. इस दिन के विषय में कई दंतकथाएं प्रचलित है. जिनमें से कुछ कथाएं इस प्रकार है. इन में से किसी कथा का स्वयं पाठ या श्रवण करना शुभ रहता है. साथ ही विधि-विधान से नागों की पूजा भी करनी चाहिए.

किसान और नागिन की कथा 

नाग पंचमी के विषय में कई कथाएं प्रचलन में है, उनमें से एक के अनुसार किसी राज्य में एक किसान अपने दो पुत्र और एक पुत्री के साथ रहता था. एक दिन खेतों में हल चलाते समय किसान के हल के नीचे आने से नाग के तीन बच्चे मर गयें. नाग के मर जाने पर नागिन ने शुरु में विलाप कर दु:ख प्रकट किया फिर उसने अपनी संतान के हत्यारे से बदला लेने का विचार बनाया.

रात्रि के अंधकार में नागिन ने किसान व उसकी पत्नी सहित दोनों लडकों को डस लिया. अगले दिन प्रात: किसान की पुत्री को डसने के लिये नागिन फिर चली तो किसान की कन्या ने उसके सामने दूध का भरा कटोरा रख दिया. और नागिन से वह हाथ जोडकर क्षमा मांगले लगी. नागिन ने प्रसन्न होकर उसके माता-पिता व दोनों भाईयों को पुन: जीवित कर दिया.

उस दिन श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी. उस दिन से नागों के कोप से बचने के लिये इस दिन नागों की पूजा की जाती है. और नाग -पंचमी का पर्व मनाया जाता है.

राजा और पांच नाग कथा

एक अन्य कथा के अनुसार एक राजा के सात पुत्र थे, सभी का विवाह हो चुका था. उनमें से छ: पुत्रों के यहां संतान भी जन्म ले चुकी थी, परन्तु सबसे छोटे की संतान प्राप्ति की इच्छा अभी पूरी नहीं हुई थी. संतानहीन होने के कारण उन दोनों को घर -समाज में तानों का सामना करना पडता था. समाज की बातों से उसकी पत्नी परेशान हो जाती थी. परन्तु पति यही कहकर समझाता था, कि संतान होना या न होना तो भाग्य के अधीन है.

इसी प्रकार उनकी जिन्दगी के दिन किसी तरह से संतान की प्रतिक्षा करते हुए गुजर रहे थें. एक दिन श्रवण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी. इस तिथि से पूर्व कि रात्रिं में उसे रात में स्वप्न में पांच नाग दिखाई दिये. उनमें से एक ने कहा की अरी पुत्री, कल नागपंचमी है, इस दिन तू अगर पूजन करें, तो तुझे संतान की प्राप्ति हो सकती है.

प्रात: उसने यह स्वप्न अपने पति को सुनाया, पति ने कहा कि जैसे स्वप्न में देखा है, उसी के अनुसार नागों का पूजन कर देना. उसने उस दिन व्रत कर नागों का पूजन किया, और समय आने पर उसे संतान सुख की प्राप्ति हुई.

नाग पंचमी पूजन विधि

इस दिन प्रात: नित्यक्रम से निवृ्त होकर, स्नान कर घर के दरवाजे पर पूजा के स्थान पर गोबर से नाग बनाया जता है. मुख्य द्वार के दोनों ओर दूध, दूब, कुशा, चंदन, अक्षत, पुष्प आदि से नाग देवता की पूजा करते है. इसके बाद लड्डू और मालपूओं का भोग बनाकर, भोग लगाया जाता है. ऎसी मान्यता है कि इस दिन सर्प को दूध से स्नान कराने से सांप का भय नहीं रहता है. भारत के अलग- अलग प्रांतों में इसे अलग- अलग ढंग से मनाया जाता है.

भारत के दक्षिण महाराष्ट्र और बंगाल में इसे विशेष रुप से मनाया जाता है. पश्चिम बंगाल, असम और उडीसा के कुछ भागों में इस दिन नागों की देवी मां मनसा कि आराधना की जाती है. केरल के मंदिरों में भी इसदिन शेषनाग की विशेष पूजा अर्चना की जाती है.

इस दिन विशेष रुप से सरस्वती देवी की पूजा-आराधना भी की जाती है. और बौद्धिक कार्य किये जाते है. ऎसी मान्यता है कि इस दिन घर की महिलाओं की उपवास रख, विधि विधान से नाग देवता की पूजा कि जाती है. इससे परिवार की सुख -समृ्द्धि में वृ्द्धि होती है. और परिवार को सर्पदंश का भय नहीं रह्ता है.

पूजन-विधि

नाग पंचमी की पूजा करने के लिये प्रात: घर की सफाई करने के बाद पूजन में भोग लगाने के लिये सैंवई-चावल आदि बनायें. देश के कुछ हिस्सों में नागपंचमी के एक दिन पहले खाना बनाकर रख लिया जाता है. और नागपंचमी के दिन बासी खाना खाया जाता है. पूरे श्रवन मास में विशेषकर नागपंचमी के दिन, धरती खोदना या धरती में हल, नींव खोदना मना होता है.

पूजा के वक्त नाग देवता का आह्वान कर उसे बैठने के लिये आसन देना चाहिए. उसके पश्चात जल, पुष्प और चंदन का अर्ध्य देना चाहिए. नाग प्रतिमा का दूध, दही, घृ्त, मधु ओर शर्कर का पंचामृ्त बनाकर स्नान करना चाहिए. उसके पश्चात प्रतिमा पर चंदन, गंध से युक्त जल चढाना चाहिए.

इसके पश्चात वस्त्र सौभाग्य सूत्र, चंदन, हरिद्रा, चूर्ण, कुमकुम, सिंदूर, बिलपत्र, आभूषण और पुष्प माला, सौभाग्य द्र्व्य, धूप दीप, नैवेद्ध, ऋतु फल, तांबूल चढाने के लिये आरती करनी चाहिए. इस प्रकार पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है. इस दिन नागदेव की पूजा सुगंधित पुष्प, चंदन से करनी चाहिए. क्योकि नागदेव को सुंगन्ध विशेष प्रिय होती है.

नाग पंचमी कि पूजा के लिये इस मंत्र को प्रयोग करना चाहिए. मंत्र इस प्रकार है-

" ऊँ कुरुकुल्ये हुं फट स्वाहा"

इस मंत्र के काल सर्प दोष की शान्ति भी होती है. इस स्त्रोत का पाठ करने से नागो के कष्ट से मुक्ति मिलती है. सर्पभय और विष बाधा कभी नहीं सताती-

अनंतं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कंबलं। शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्। सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः।।
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।

नागपंचमी के पर्व को देशभर में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। केरल में इस दिन भगवान शेषनाग की पूजा की जाती है। जबकि पश्चिम बंगाल, असम तथा उड़ीसा में नागों की देवी मां मनसा की पूजा की जाती है। नागपंचमी को बौद्धिक कार्य यथा पठन-पाठन, पूजा, विद्यारम्भ आदि कार्यों के लिए अत्यन्त शुभ माना जाता है। अतः इस दिन मां सरस्वती की विशेष पूजा की जाती है।


नागपंचमी पर न करें ये काम

(1) नागपंचमी पर भूल कर भी धरती खोदना, धरती में हल चलाना, नींव खोदना या कपड़े सिलना जैसे काम नहीं करने चाहिए।
(2) नागपंचमीके दिन कुछ भी काटना और तलना नहीं चाहिए तथा चूल्हे पर तवा नहीं रखना चाहिए। इसका कारण यह है कि नागपंचमीके दिन वातावरणमें देवताओंके पवित्रक अर्थात् चैतन्यके अतिसूक्ष्म कण कार्यरत रहते हैं। वे भूमिके अति निकट आते हैं। इस दिन काटने जैसी कृति करनेसे रज-तमप्रधान स्पंदन निर्माण होते हैं। ये स्पंदन देवता तत्वके कार्यमे बाधा लाते हैं। साथ ही सबके लिए कष्टदायी होते हैं।

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