सनातन धर्म में नागपंचमी को नाग की पूजा का विशेष महत्व है, और यही कारण है कि इस दिन नाग मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है। मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट (दरवाजे) वर्ष मेंं एक बार 24 घंटे के लिए नागपंचमी पर खुलते हैं। इस बार पट मंगलवार आधी रात यानी 12 बजे खुले। नागचंदे्रश्वर का मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के सबसे ऊपरी तल पर स्थित है। इस मंदिर में 11वीं शताब्दी की प्रतिमा स्थापित है।
एक प्रतिमा में नाग के फन पर शंकर पार्वती विराजमान हैं और इस प्रतिमा के दर्शन के बाद ही नागचंद्रेश्वर महादेव के दर्शन होते हैं। मान्यता है कि नागपंचमी के मौके पर इस मंदिर के दर्शन से कई समस्याओं से मुक्ति मिलती है, क्योंकि खुद नागदेवता इस दिन मंदिर में आते हैं।
एक प्रतिमा में नाग के फन पर शंकर पार्वती विराजमान हैं और इस प्रतिमा के दर्शन के बाद ही नागचंद्रेश्वर महादेव के दर्शन होते हैं। मान्यता है कि नागपंचमी के मौके पर इस मंदिर के दर्शन से कई समस्याओं से मुक्ति मिलती है, क्योंकि खुद नागदेवता इस दिन मंदिर में आते हैं।
दशमुखी सर्प शय्या पर विराजमान हैं भोले भंडारी
नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं. कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी. उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है. पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं. मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं. शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं.
क्या है पौराणिक मान्यता?
सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी. तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया. मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया. लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं.
शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है. इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है.
दो लाख से ज्यादा भक्त करते हैं नागदेवता के दर्शन
यह मंदिर काफी प्राचीन है. माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था. इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था. सभी की यही मनोकामना रहती है कि नागराज पर विराजे शिवशंभु की उन्हें एक झलक मिल जाए. लगभग दो लाख से ज्यादा भक्त एक ही दिन में नागदेव के दर्शन करते हैं.
नागपंचमी पर वर्ष में एक बार होने वाले भगवान
नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए एक दिन पहले ही रात 12 बजे मंदिर के पट खोल दिए जाते हैं. दूसरे दिन नागपंचमी को रात 12 बजे मंदिर में फिर आरती होती है और मंदिर के पट पुनः बंद कर दिए जाते हैं. नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजा और व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासियों द्वारा की जाती है.
Additional information on http://mandirinfo.com/TempleDetails.aspx?HID=366
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